ऊँचई

(पूर्व प्रधानमंत्री, भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता *ऊँचाई* का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद)

ऊँच पहार म
पेंड़ नइ जामय
नार नइ लामय
न कांदी-कुसा बाढय़।

जमथे त सिरिफ बरफ
जेन कफन कस सादा
अउ मुरदा कस जुड़ होथे
हांसत-खुखुलावत नरवा
जेकर रूप धरे
अपन भाग ऊपर बूंद-बूंद रोथे।

अइसन ऊँचई
जेकर पारस
पानी ल पखरा कर दय
अइसन ऊँचई
जेकर दरस हीन भाव भर दय
गर-माला के अधिकारी ये
चढ़इया बर नेवता ये
वोकर ऊपर धजा गडिय़ाये जा सकथे।

फेर कोनो चिरई
उहां खोंधरा नइ छा सकय
न कोनो रस्ता रेंगइया
वोकर छांव म सुरता सकय।

सच बात ये आय के
सिरिफ ऊँच होवइ ह
सबकुछ नइ होवय
सबले अलग
लोगन ले बिलग
अपन ले कटे
अकेल्ला म खड़े
पहार के महानता नहीं
मजबूरी आय
ऊँचई अउ गहरई म
अगास-पताल के दुरिहाई हे।

जेन जतका ऊँच
ततके अकेल्ला होथे
जम्मो बोझा ल खुदे बोहथे
मुंह ल मुच ले करत
मने-मन रोथे।

जरूरी ये आय के
ऊँच होवई के संग
फैलाव घलोक होय
जेकर ले मनखे
ठुडग़ा कस खड़े झन राहय
लोगन संग मिलय-जुलय
ककरो संग रेंगय।

भीड़ म भुलाना
सुरता म समाना
खुद ल बिसरना
अस्तित्व ल अरथ देथे
जिनगी ल महकाथे।

धरती ल बठवा मन के नहीं
ऊँच-पूर मनखे के जरूरत हे
अतका ऊँच ते अगास ल अमर लय
नवा-दुनिया म प्रतिभा के बीजा बो दय।

फेर अतेक ऊँच नहीं
ते पांव तरी दूबी झन जामय
कोनो कांटा झन गडय़
न कोनो डोंहड़ी फूलय।

न बसंत न पतझड़ होय
सिरिफ ऊँचई के आंधी होय
कलेचुप ठगड़ा कस अकेल्ला।

हे भगवान,
मोला अतेक ऊँचई कभू झन देबे
पर ल घलोक नइ पोटार सकंव
अइसन निष्ठई कभू झन देबे।

मूल हिन्दी : अटल बिहारी वाजपेयी
छत्तीसगढ़ी भावानुवाद : सुशील भोले
Sushil Bhole1
Sushil Bhole
41-191, Dr. Baghel Gali,
Sanjay Nagar, Raipur (C.G.)
Mob. +91 98269 92811

Related posts

2 Thoughts to “ऊँचई”

  1. सुघ्घर भोलेजी बड सुघ्घर

  2. satellite3210

    Bahutech sughar ..

Comments are closed.